कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में एक बात तो साफ़ हो गई, कि कांग्रेस के ही, कुछ नेता ही कांग्रेस का जहाज डुबाना चाहते है, पहले से ही कांग्रेस का जहाज़ पिछली दो योजनाओं से मझदार में फंसा है, और अब पार्टी में यंग गार्ड और ओल्ड गार्ड की लड़ाई में कांग्रेस पार्टी लुप्त ना हो जाए। एक कहावत कांग्रेस की इस परिस्थिति में बिल्कुल फीट बैठ रही है।
"घर का भेदी लंका ढाये "
अर्थात्: बाहर वाला कोई व्यक्ति हमारा कुछ नुक्सान नहीं पंहुचा सकता जब तक की कोई अपना उस बाहरी व्यक्ति की सहायता न करे।
कांग्रेस का अंदरूनी विवाद टला, ख़त्म नही हुआ
भलें ही कांग्रेस कार्यसमिति की सोमवार को करीब सात घंटे चली बैठक से एक बात साफ है कि कांग्रेस का अंदरूनी विवाद टला जरूर है मगर खत्म नहीं हुआ है। कार्यसमिति ने एकमत से सोनिया गांधी को समर्थन देते हुए, पार्टी में संगठनात्मक बदलाव के लिए अधिकृत तो जरूर कर दिया। मगर बैठक के अंत में सोनिया को भी कहना पड़ा कि उनके मन में पत्र लिखने वालों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है।
माना जा रहा है कि जब भविष्य में कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का विकल्प तलाशेगी तब पार्टी की अंतर्कलह एक बार फिर बाहर आ सकती है।
सोनिया - राहुल गांधी को घेरने के लिए रचा चक्रव्यूह
चिट्ठी लिखने वाले नेताओं का इशारा एक नज़र में देखें तो जुबां से ही सही, लेकिन राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ियों ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को घेरने की कोई कसर नहीं छोड़ी, कार्यसमिति की बैठक की शुरुआत में ही सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश इसका उदाहरण है।
मगर दिनभर चली उठापटक के बाद शाम को फिर अंतरिम अध्यक्ष के रूप में उनके नाम पर ही सहमति बनी। बता दें, कांग्रेस में बड़े बदलाव की मांग करने वाले वरिष्ठ नेताओं के पत्र पर राहुल की प्रतिक्रिया के बाद हंगामे की स्थिति पैदा हो गई।
राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं पर चलाए शब्द बाण
कांग्रेस में बड़े बदलाव की मांग करने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं के पत्र पर, राहुल गांधी ने शब्द बाण चलाकर उन नेताओं की मंशा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया।
राहुल गांधी ने इन नेताओं की भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाते ही, बैठक में विरोध का स्वर फूट पड़ा, कपिल सिब्बल व गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेता विरोध पर उतर आए और तब इस नए संकट से निपटने के लिए तुरंत डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ और 4 घंटे में ही दोनों को मना ही दिया गया।
कांग्रेसी नेताओं को राहुल गांधी स्वीकार नहीं
जानकारों का कहना है कि पार्टी का एक धड़ा राहुल की दोबारा ताजपोशी नहीं चाहता है। वह उनकी पसंद के व्यक्ति को भी पार्टी की अगुवाई सपने के समर्थन में नहीं है। ऐसे में भविष्य में भी पार्टी में नेतृत्व के मुद्दे को लेकर टकराव पैदा हो सकता है।
कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी एक विकल्प
कांग्रेस अध्यक्ष के लिए और उत्तरप्रदेश चुनावों को देखते हुए सूत्रों का यह भी कहना है कि 6 महीने में प्रियंका को कमान देने की पटकथा भी लिखी जा सकती है।
कांग्रेस की अंदरूनी कलह शोशल मीडिया पर आई
वहीं, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने बैठक के दौरान ही ट्वीट किया। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि राहुल गांधी कह रहे हैं हम भारतीय जनता पार्टी से मिले हुए हैं। मैंने राजस्थान हाईकोर्ट में कांग्रेस पार्टी का सही पक्ष रखा, मणिपुर में पार्टी को बचाया। पिछले 30 साल में ऐसा कोई बयान नहीं दिया जो किसी भी मसले पर भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाए। फिर भी कहा जा रहा है कि हम भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं।
गुलाब नबी आज़ाद ने कहा पार्टी से इस्तीफा दे दूँगा
इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी पर खफा हो गए। सूत्रों के मुताबिक, बैठक में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर वह किसी भी तरह से भाजपा से मिले हुए हैं, तो वह अपना इस्तीफा दे देंगे। आजाद ने कहा कि चिट्ठी लिखने की वजह कांग्रेस की कार्यसमिति थी। चिट्ठी में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए गए और कहा गया कि इस वक्त एक ऐसे अध्यक्ष की मांग है कि जो पूर्ण रूप से पार्टी को वक्त दे सके।
कांग्रेस पार्टी में 40 साल गांधी परिवार के अध्यक्ष
आजादी के बाद से कांग्रेस 18 अध्यक्ष देख चुकी है। इनमें से पांच तो सिर्फ गांधी परिवार से रहे, बाकी 13 गांधी परिवार से बाहर के हैं। हालांकि असलियत में गांधी परिवार के हाथों में ही सत्ता और संगठन की बागडोर रही है। गांधी परिवार से आने वाले कांग्रेस के पांच अध्यक्ष करीब 40 सालों तक इस पद पर रहे हैं। 1998 के बाद से कांग्रेस का अध्यक्ष पद लगातार गांधी परिवार के पास ही रहा है।
1998-99 में भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरी कांग्रेस
सोनिया गांधी ने 1998 में पहली बार कांग्रेस की कमान संभाली थी और यह दूसरा मौका है। जब उनके सामने पार्टी में ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा हुई है। इससे पहले 1999 में कांग्रेस के दिग्गज नेता शरद पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने का तीखा विरोध किया था। पवार की ओर से यह मुद्दा उठाए जाने के बाद सोनिया ने इस्तीफा दे दिया था। मगर कार्यसमिति की ओर से सर्वसम्मति से सोनिया का इस्तीफा खारिज कर दिया गया था। बाद में पवार ने कुछ बागी नेताओं के साथ कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।