अलवर लोकसभा चुनाव 2024 बीजेपी के लिए टेंशन अलवर लोकसभा चुनावी विश्लेषण पर एक नज़र

राजस्थान में चुनाव सरगर्मियां तेज हो गई है। प्रत्याशी और स्टार प्रचारक जीत के लिए पूरा दम लगा रहे है। प्रदेश में पहले चरण का मतदान 19 अप्रेल को होगा। तो दूसरा चरण का मतदान 26 अप्रैल को होगा। कई सीटों पर चुनाव बड़ा रोचक हो गया है। ऐसे में हर कोई यह जानना चाहता है। कि इस बार किस पार्टी को कितने सीटे मिल रही है। इसको लेकर अलग-अलग ताजा सर्व सामने आ रहे है। आइए देखते हैं। प्रदेश में पिछले 2 चुनावों में बीजेपी को सभी 25 सीटों पर जीत हासिल हुई है। वहीं कांग्रेस 2014-19 में एक भी सीट नहीं जीत पाई। लेकिन इस चुनाव में स्थिति बदलती हुई नजर आ रही है। सर्वे के मुताबिक इस बार बीजेपी प्रदेश में क्लीन स्वीप करती हुई नहीं दिख रही।
 
अलवर लोकसभा से भूपेंद्र को भारी दिक्कत
अलवर लोकसभा का सर्वे पहले से ही भूपेंद्र यादव के खिलाफ नज़र आ रहा है। यह बात दूसरी है। लोग खुलकर अलवर लोकसभा में बात नहीं कर रहें। लेकिन आकड़ो पर एक नज़र डाले तो पिछले वर्ष हुए राजस्थान विधानसभा चुनावों का रिजल्ट जग जाहिर है। अलवर लोकसभा की आठ विधानसभा में से बीजेपी सिर्फ़ तीन विधानसभा सभा में ही जीत दर्ज कर पाई। दूसरी ओर विभिष्ण एक्टिव मोड में है मुह से कुछ नही बोल रहें। वोट किसको देना है। किसको नहीं। जो इशारा ललित यादव की तरफ़ दिखता नज़र आ रहा है। पॉलिटिकल विशेषज्ञों की माने तो अलवर लोकसभा की सीट अमृतसर लोकसभा सीट की तरह दिख रही है। जहाँ नाम बड़े और दर्शन छोटे जिस तरह बीजेपी के पहली पंक्ति के नेता पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली अमृतसर से चुनाव हार गए थे। इसी तरह भूपेंद्र यादव का चुनाव दिखता नज़र आ रहा है। 
युवाओं पर पकड़ बनाने में ना कामयाब रहें
बीजेपी केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव बेशक भाजपा में अच्छी खासी पकड़ रखते हो। लेकिन युवाओं पर पकड़ बनाने में वह कामयाब नहीं हो पा रहें। युवाओं की मन की बात वह नहीं समझ पा रहें। युवा चाहते है उनका नेता ऐसा हो जो उनकी पहुँच में हो। अलवर लोकसभा का ही हो। लोकल हो। येही कारण है कांग्रेस प्रत्याशी ललित यादव का चुनाव पहले दिन से उठा हुआ है। ललित यादव लोकल विधायक भी है और लगभग पचास हज़ार वोटों से वह मुंडावर से जीता भी हुआ है। 

अलवर लोकसभा की जनता को कैसे समझाए
भूपेंद्र यादव को, बीजेपी के ही, छुट भैइया नेताओं का भी, साथ पूर्णतः नहीं मिल पा रहा। इसके पीछे का कारण यह है। पिछले दो बार से इस सीट पर बीजेपी का  कब्ज़ा रहा है। सांसद गायब रहे काम छोड़ो शक्ल भी नही दिखी उन नेताओं की। यही कारण है कि अलवर लोकसभा से भूपेंद्र यादव की टेंशन बड़ी हुई है।
अलवर लोकसभा की आठ विधानसभा सीटों पर बीजेपी के लगभग 2 दर्जन से ज्यादा नेता है। जो राजस्थान विधानसभा चुनाव में टिकट ना मिलने की वजह से अपना गुस्सा निकालने का मौका नहीं छोड़ना चाहते। उन नेताओं की माने तो वह भी सही ही कह रहें है। क्योंकि जनता को जवाब उन्हें ही देना होता है। जन समस्याओं के समाधान के लिए जनता उन्हीं की तरफ देखती है। लेकिन अलवर  लोकसभा से बीजेपी के नेता हेलीकॉप्टर लैंडिंग से चुनाव में उतर तो जाते है। बड़े बड़े वादे भी कर जाते है। वोट पाकर रफ़ू चक्कर हो जाते है। जनता की समस्या जस की तस बनी रहती है।
अलवर लोकसभा में औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकलयुक्त गंदे पानी और कचरे ने आसपास की खेती वाले बड़े भूभाग को बर्बाद कर रखा है। पिछले 10 साल से सांसद भी बीजेपी का है। और केंद्र में 10 साल से बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार भी सता में रही। लेकिन जन समस्याओं से किसी नेता को कोई सरोकार नहीं।
दूसरी ओर साफ पीने योग्य पानी पर केन्द्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव वादा कर रहें है। कि पीने योग्य पानी की समस्या का समाधान करना उनकी प्राथमिकता रहेगी। पिछले 10 साल से भूपेंद्र यादव राजस्थान से ही राज्यसभा सांसद थे। चुनाव प्रचार के समय उनको इस जायज समस्या की याद आई। इससे पहले वे कहा थे।

जातीय समीकरण सेट करने में रहे असफल
अलवर लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण सेट करना बीजेपी के लिए बड़ी दिक्कत है। क्योंकि कांग्रेस ने भी यादव चेहरा उतारकर बीजेपी के लिए टेंशन बड़ा दी है। अब यादव वोट बैंक दो धड़ों में बट गया है।
पहला मजबूत कारण लोकल नेता और बाहरी नेता का है। क्योंकि अलवर लोकसभा से पिछले दो बार सांसद तो बीजेपी का बन गया। लेकिन दिखा कही नहीं। दूसरा दलित वोट बैंक पर 90% कांग्रेस के साथ जाता नज़र आ रहा है। इसके पीछे जन मन की बात करें तो बढ़ती महँगाई बेरोज़गारी विशेष मुद्दे है। गुर्जर वोट बैंक शुरू से कांग्रेस का रहा है। तो भूपेंद्र यादव के लिए यह तोड़ना बहुत मुश्किल है। क्योंकि अधिकतर गुर्जर सचिन पायलट को ही अपना नेता मानते है। पिछले दिनों ललित यादव के पक्ष में हुई सचिन पायलट की सभा ने बीजेपी की नींद उड़ा दी थी। 

महँगाई और बेरोजगारी मुद्दा साइलेंट वॉर
राजस्थान विधानसभा 2023 चुनावों में अलवर लोकसभा की 8 विधानसभाओं का रिजल्ट एक संकेत था। बीजेपी भलीभाँति जानती है। बीजेपी को अलवर लोकसभा की 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 5 विधानसभाओं में दांत खट्टे करने पड़े थे। क्योंकि बढ़ती महँगाई का असर सबसे ज्यादा महिलाओ पर हुआ। घर का खर्चा वह महँगाई पर सबसे ज्यादा चर्चा महिलाए ही करती है। महँगाई मुद्दे पर महिलाओं से बात करें। तो वह सीधा आग बबूला हो जाती है।
शायद येही महत्वपूर्ण कारण रहा होगा। अलवर लोकसभा की 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव सर्वे में महिलाओ का वोट बैंक खिसकता नज़र आ रहा है। इसलिए अलवर लोकसभा सीट पर बीजेपी को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है।
अलवर लोकसभा में बीजेपी देशभर के छोटे बड़े नेता प्रचार में लगा दिए है। बेरोजगारी मुद्दे पर बीजेपी बात नहीं कर रही। राजनीतिक गलियारों में बेरोजगारी मुद्दे पर ठहाके भी लग रहे है। विपक्ष बड़ा आरोप लगा रहा है। जिस तरह औद्योगिक क्षेत्र में लोकल को रोजगार नहीं दिया जाता। बाहरी को रोज़गार में प्राथमिकता दी जाती है। इसी तरह बीजेपी के लोकल नेताओं को अलवर लोकसभा का टिकट नही दिया जाता। किसी बाहरी को टिकट दिया जाता है। 

राजस्थान सरकार में यादव को मंत्री नही बनाना
पिछले वर्ष हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में अलवर लोकसभा से पूर्व सांसद महंत बालकनाथ को तिजारा विधानसभा से उम्मीदवार बनाया गया था। दूसरी ओर उन्हे मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री बनाने का शगुफ्ता राजनीतिक गलियारों से लेकर जनता के बीच उड़ा हुआ था। इसी कारण तिजारा विधानसभा पूरे राजस्थान में हॉट सीट बन गई थी।
तिजारा विधानसभा के जातीय समीकरण देखे तो यह सीट कांग्रेस के पक्ष में जाती नज़र आ रही थी। लेकिन बाबा बालकनाथ का अच्छा वर्चस्व है। जिस कारण उन्हे छत्तीस बिरादरी का वोट मिला। खासकर यादव और गुर्जर समुदाए ने एक जुट होकर महंत बालकनाथ को वोट दिया था। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री छोड़ो यादव समाज से एक भी मंत्री नहीं बनाया गया। इससे यादव समाज में बीजेपी के प्रति एक गुस्सा है। 

एक नज़र जातीय समीकरण देखें 
2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 18 लाख 88 हजार 524 वोट थे। जिनमें पुरुष मतदाता 10 लाख 02 हजार 488 और महिला मतदाता 8 लाख 86 हजार 26 रहे, कुल 67 प्रतिशत मतदान हुआ।  इस चुनाव में जाति के हिसाब से अनुसूचित जाति समाज के (4,34,360) 23 प्रतिशत, मुस्लिम समाज (3,58,819) 19 प्रतिशत, यादव समाज 2,45,508 13 प्रतिशत ब्राह्मण (1,92,818) 10.21 प्रतिशत, जाट (1,56,936) 8.3 प्रतिशत, वैश्य (1,24,453) 6.59 प्रतिशत, एसटी (1,11,422) 5.9 प्रतिशत, माली (94,992) 5.03 प्रतिशत, गुर्जर (73,085) 3.87 प्रतिशत, राजपूत (37,770) 2 प्रतिशत अन्य जातिया 3.09 प्रतिशत लगभग वोट थे।

यादव के सामने यादव खड़ा कर कांग्रेस ने 'तुरुप का इक्का' चल दिया जातीय समीकरण पर नज़र डाले तो कांग्रेस का ललित यादव मजबूत नज़र आ रहा है। जिस तरह गुर्जर बैंक पर पूरे राजस्थान में सचिन पायलट अच्छी खासी पकड़। और ललित यादव सचिन के नज़दीकी माने जाते है तो गुर्जर वोट बैंक हासिल करने में वह कामयाब रहेंगे। बीजेपी के भूपेंद्र यादव के लिए एक तरफ़ मुस्लिम वोट ओर दूसरी ओर दलित वोट बैंक सबसे बड़ी खतरे की घण्टी है। और यह दोनों धड़े कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक रहें है। अब गुर्जर वोट बैंक पर भी ललित यादव की तरफ़ झुकता नज़र आ रहा है। पहले से ही जाट वोट बैंक ललित यादव की तरफ ट्रांसफर हो गया है। उसके पीछे का खुद ललित यादव की फेन फ्लाइंग और मुडावर विधानसभा यादव जाट से भरी हुई है। मुंडामुंडा से ललित यादव को छत्तीस बिरादरी का समर्थन प्राप्त है। 
लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) को लेकर बीजेपी-कांग्रेस समेत सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में जुटी हुई है। अलवर लोकसभा सीट में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने जातीय समीकरण को देखते हुए, अपने प्रत्याशियों को खड़ा किया है। अलवर सीट पर बीजेपी ने भूपेंद्र यादव (Bhupendra Yadav) को, और कांग्रेस ने ललित यादव (Lalit Yadav) को चुनावी दंगल में उतारा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा, कि इस सीट में कौन बाजी मारता है। बता दें, कि लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे 4 जून सामने आएंगे, जिसके बाद पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी।
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